Thursday, June 04, 2009

एक सफ़र




प्यारे दोस्तों,

हिंदुस्तान की तरक्की देखनी हो इसकी रेलगाडियां सब से उत्तम जगह है, आपने सुना तो होगा की हिंदुस्तान की आबादी १२० करोड़ है, पर कभी देखा नहीं होगा| जी हाँ हम बात कर रहे हैं अपने देश की रेलगाडियों की| अगर आपको अपने देश की जनसंख्रा की समस्या को महासूश करना हो तो इसकी लौहपथ गामिनी अतिउत्तम जगह है|
अभी कुछ दिन पहेले की बात है ग्रीष्मकालीन अवकाश के उपलक्ष्य में मैंने एक सप्ताह के लिए घर जाने का निशचय किया| हालाँकि मैंने चंडीगढ़ एक्सप्रेस के लिए आरक्षण करा लिया था, पर क्या करें जब सिर पर शनि की सधे सत्ती सवार हो तो कुछ भी अच्छा नहीं होता है| मैंने हाल-हाल में अपनी कुछ दिमागी और दिली समस्याओं से उबरा था| लेकिन कोई बात नहीं, असल में हुआ ये की ग्रीष्मकालीन प्रवास के लिए शुल्क जमा करने और हमारी विभागाध्यक्षा की अनुपस्थिति कारन मेरा प्रस्थान विलंबित हो गया| आखिर में सारी औपचारिकताये निभा कर मैंने २४ को घर जाने का निश्चय किया| मेरा घर जाना बेहद जरूरी हो गया था क्यूंकि मुझे अपने एक बेहद घनिष्ठ मित्र का का सिफारिश पत्र भी ले जाना था| आखिर में मैंने २४ की रात को खुश दिल से घर के लिए प्रस्थान किया, खुश इसलिए था क्योंकि आई. पी. एल. क्रिकेट में मेरे पसंदीदा समूह ने जीत पायी थी |
और आखिर में, मैं एक रिक्शा कर के स्टेशन पहुँच गया| हालाँकि आरक्षण न होने के कारन मैं बहुत विचलित था, मेरे बैग में मेरा संगणक भी रखा था और उसकी सुरक्षा के प्रति मैं आशवस्त नहीं था| आखिर में लौहपथ गामिनी एकदम सही समय पर आ पहुंची| मैंने जल्दी से अपना सामान उठाया और सामान्य श्रेणी के डिब्बे की तरफ भगा, लेकिन वहां का नजारा देख कर सहम गया| सारे डब्बे अपनी पूरी क्षमता से अधिक भरे हुए थे| आखिर में मुझे कुछ नहीं सूझा तो एक दो यात्रियों से लडाई कर के खुद को एक डिब्बे के अन्दर ठूस दिया| लेकिन मैं बहुत सौभ्ग्यसाली था की अगले स्टेशन पर ही गाड़ी खली हो गयी| और मैं बेहद आराम से घर जा पहुँचा और इसी अनुभव के कारन मैंने वापसी का भी आरक्षण ना करने का निश्चय किया| और ख़ुशी -२ घर पहुच गया| एक सप्ताह के प्रवास के बाद मैंने वापस लौटने का निश्चय किया, और रविवार को लखनऊ के लिए निकल पड़ा, कुछ गृह कारणों से मैं काफी जल्दी लखनऊ पहंच गया| वहां पर अकेले ५ घंटे बिताना भी बेहद कष्टप्रद था| लेकिन किसी तरह क्रिकेट सम्राट और इंडिया टुडे को पढ़ते हुए मैंने मैंने ६ घंटे गुजर लिए| ठीक रात्रि के १०.३० बजे गाड़ी प्लेटफॉर्म नंबर ३ आ लगी| और मैंने आव देखा न ताव और जगह पाने के उद्येश से चलती गाड़ी में ही चढ़ गया पर अफ़सोस कोई जगह उपलब्ध नहीं थी| मैं बेहद आशचर्य में था की ऐसा कैसे हुआ और ये लोग कहाँ से आ गए| इसतरह से गाड़ी लखनऊ में ही अपनी पूरी क्षमता के साथ भर गयी| और मैंने पूरा सफ़र खड़े-२ तय किया, तब पहेली बार मुझे अपनी क्षमताओ पर आशचर्य हुआ की मैं ८ घंटे कैसे खडा रह सकता हूँ| पर आखिर किसी तरह मैं रूडकी पहुंचा |

1 comment:

  1. Om shanti Om ka dialogue Students ke andaaz mein ...



    Itni shiddat se maine paas hone ki koshish ki hai,,,,,



    ki har teacher ne mujhe marks na dene ki saazish ki hai,,,,,



    Agar tum kisi paper mein paas hona chahte ho,,,



    to saari kaaynat tumhe usko paas karane me lag jati hai,,,,,,



    Ye exams bhi apne hindi filmon ki tarah hote hain,,,,,



    end tak sab kuch achha ho hi jata hai-HAPPYYYYS ENDINGGGGS......



    aur agar aisa nahi hota,,,,,





    toh exam abhi khatam nahi hua,


    .


    SUPPLEMENTARY abhi baaki hai mere dost................ ha ha ha.












    "33 marks ki kimat,

    tum kya jaano lecturer babu.....

    har student ka khwaab hota hai....33 marks.


    GAurav Tripathi

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